मधुबनी पेन्टिंग
Madhubani Painting #
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मधुबनी पेंटिंग
मुख्य रूप से बिहार के मिथिला क्षेत्र (Area)में बनायीं जाने वाली कला है ,इसके अलावा ये पेंटिंग नेपाल के कुछ छेत्रो में
भी बनायीं जाती है ,इसे मधुबनी के
आलावा इसे मिथिला के नाम से भी जाना जाता है ,इस पेंटिंग की मुख्य विशेषताये ये है की ये कई प्रकार के ज्यामितीय पैटर्न में
बनायीं जाती है ,जैसे गोलकार तिकोन वर्गाकार आदि।
Madubani Penting art |
कपड़ो,घरो कीदीवारों को सजाने साड़ी व्यवसाय जैसे छेत्रो (Area) में भी इसका प्रयोग होने लगा है।प्रारम्भ में इसे पेड़ पौधो ,फूलो जैसे प्राकृतिक स्त्रोतों के रंगो से बनाया जाता था , आजकल केमिकल रंगो का भीप्रयोग किया जाने लगा है। मधुबनि पेंटिंग के विषय रामायण ,महाभारत ,सूर्य ,चन्द्रमा पौराणिक कथाये ,राधा कृष्ण लताये बेलबुटे, आदि है
सामान्य रूप से देखा जाये तो इस प्रकार की चित्रकला आम लोगो के जीवन से जुडी हुई और पारम्परिक है ये एक प्रकार की मानवीय जीवन शैली को दर्शाती है वास्तव में ये आम लोगो के जीवन व्याहवार से जुडी हुई होने के साथ इतिहास को भी संजोने का काम करती है, इतिहास से लेकर आज के आम लोगो की दिनचर्या के महत्व को दर्शाती हुई ये कला आज भी अपने आपमें उतनी ही नविन है जितनी इतिहास में कभी रही होगी।
Madhubani Painting #
मधुबनी पेंटिंग सेल और कीमत
मधुबनि पेंटिंग का आज के दौर में व्यवसायीकरन होने के कारन इन्हे ख़रीदा और बेचा जा सकता है यदि आप इन पेंटिंगों को खरीदना चाहते है तो फ्लिपकार्ट ,अमेजन जैसी साइटों पर जा सकते है ,और आप इन पेंटिगों को बनाना जानते है तो इन साइटों पर जाकर सेल कर सकते है और अर्निंग कर सकते है
सामान्य रूप से इन पेंटिंगों की कीमत कुछ सौ रुपए से लेकर दस से बारह हजार रूपए तक होती है लेकिन विदेशो में ये पेन्टिन बहुत अधिक दामों में बिकती है।
मधुबनी पेंटिंग के विषय में
Madubani Penting Art |
Madhubani Painting
मछली को मधुबनी आर्ट में बहुत ही सजावट के साथ बनाया जाता है जो की इस आर्ट की खासियतों में से एक है।
इसे बहुत सारे रंगो अलंकारों फूल पत्तियों से सजाया जाता है जो देखते ही बनता है। मधुबनि पेंटिंग का प्रयोग साड़ियों ,शाल विभिन्न प्रकार के कपड़ो में बड़ी मात्रा में किया जाता है।विदेशो में भी इस कला का महत्त्व काफी बढ़ गया है।
आजकल शहरो में मकानों दुकानों भवनों बैंको आदि में सजावट के प्रति लोगो में जागरूकता बढ़ी है आज अधिक से अधिक लोग अपनी दीवारों को सुन्दर बनान चाहते है इसलिए पेंटिगों को खरीदना और बेचना आम हो गया है। भारत में मधुबनि पेंटिंग बिहार ,उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश ,राजस्थान जैसे राज्यों में लोकप्रिय है।
वास्तव में मधुबनी पेंटिंग भारत में पुराने समय से जुडी हुई है , कलाकारों ने इस कला का प्रयोग राजा महाराजाओ के दरबार में महलो को सजाने के लिए किया प्रारम्भ में ये कला गांव में घरो को सजाने में और दीवारों को सजाने में प्रयोग की जाती रही धीरे धीरे ये कला राज दरबारों में भी फ़ैल गयी।
इस कला का प्रयोग राजाओ के युद्ध जितने की गाथाओ का गुणगान करने के लिए भी किया जाने लगा ,मुग़ल काल में भी इस कला का पर्याप्त प्रचलन हुआ ,राजा महाराजो के द्वारा अपने चित्रों को मधुबनी आर्ट में बनवाया गया , इस कला का प्रयोग उत्सव त्योहारों में भी जो शोर से किया जाता रहा ,कहा जाता है की राजा जनक ने श्री राम के विवाह में कलाकारों को मधुबनी पेंटिंग को बनाने के लिए कहा तब से अब तक का ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दिया जाता रहा।
मधुबनी कला का प्रयोग आजकल सभी रूपों में होने लगा है यहाँ तक फैशन डिजाइनिंग में भी इस कला का प्रयोग होने लगा है और लोग इसे काफी पसंद ही करने लगे है।
सीता देवी ,महासुंदरी देवी ,गंगा देवी ऐसे कुछ नाम है जिन्होंने इस कला को उचाईयो पर पहुंचाया इन्हे कई अवार्डो के द्वारा भी सम्मानित किया गया , कई गाओं में इस कला के द्वारा लोगो को रोजगार भी मिल रहा है।
Madhubani Painting #
मधुबनी आर्ट की विषेसता
इस कला में जिन मानवो के चेहरे बनाये जाते है उनकी आँखे लम्बी और आधे चाँद के सामान बनायीं जाती है नाक थोड़ी लम्बी , लम्बा चेहरा और मानव चहरे का दाहिना या बांया भाग ही दिखाया जाता है चेहरा को सामने से कम दिखाया जाता है महिलाओ को पुराने समय में प्रयोग किये जाने वाले कपड़ो जैसे चुन्नी , लहंगा , ओढ़नी के साथ दिखया जाता है बेल बूटेदार सजे कपड़ो को दिखया जाता है , कई प्रकार के आभुषणो को भी काफी मात्रा में दिखया जाता है , महाभारत, रामायण और मुख्य रूप से कृष्ण और राधा की लीलाओ को दिखया जाता है।
Madubani Penting Art |
Madhubani Painting #
इन पेन्टिंग में कृष्णा का रंग नीला दिखया जाता है , राधा कृष्णा बहुत ज्यादा बनाये जाते है, बेल बूटे और पेड़ पोधो के एक एक पत्तो को दिखया जाता है , इन चित्रों में राजमहल ,जंगल की सीनरी पहाड़ झरने आदि को दिखया जाता है।इन पेंटिंस में ज्यादातर चटकीले रंगो का प्रयोग किया जाता है ,घुमावदार और साफ़ दिखाई जाने वाली लाइनों को ड्रा किया जाता है, आज भी नेचरल कलर का प्रयोग होता है लेकिन अब आर्टिफिसियल कलर का प्रयोग ज्यादा होने लगा है जी की बाजार में आसानी से मिल जाते है।
यदि आप भी इस प्रकार की पेंटिंग में इंटेरस्ट रखते है तो इन पेंटिंगों को घर में बनाये और घर की दीवारों को सजाये या अपने मित्रो को गिफ्ट में दें।
Madhubani Painting #
कुछ अन्य बातें
सैद्धांतिक रूप से, मधुबनी पेंटिंग ज्यादातर धर्म और पौराणिक कथाओं पर आधारित हैं। छोटी परंपरा के चित्रों में, राजा जैसे देवता सलेश, बौद्धेश्वर, जटकी मालिनी, रेशमा, और पसंद बहुतायत में होती है। महान परंपरा हिंदू देवताओं की तरह एक श्रद्धांजलि है।
कृष्ण-राधा, शिव-पार्वती, गणेश, माँ दुर्गा, और गांवों के प्राकृतिक दृश्य, हर रोज जीवन, वनस्पतियों और जीव जो चित्रकारों का जीवन का हिस्सा है, ने भी गोधना चित्रों के क्षेत्र में प्रवेश किया।कलाकारों का प्रयास किसी के बारे में एहसास कराता है जिस समय वे अपनी पेंटिंग के लिए देते हैं और उनका जीवन पूरी तरह से उनकी पेंटिंग के आसपास होता है क्योंकि, हर कोई जानता है कि मिथिला सीता का जन्म स्थान है।
उनके अनुसार मछली गुडलक और पवित्रता का प्रतीक है। मछली भी पानी का प्रतीक है जिसके साथ वह जुड़े। अमूर्त मानव आकृति के अलावा, आकृति और डिजाइन मधुबनी पेंटिंग में देखे जाते हैं जैसे वनस्पति और जीव, वक्र रैखिक उपकरण, श्रृंखला में वृत्त, छोटी पंक्तियों की श्रृंखला, मोर, मछली, फूल, पक्षी, पशु और अन्य प्राकृतिक जीवन। केंद्रीय विषय मधुबनी पेंटिंग हिंदू देवताओं और देवी हैं। दृश्य गहराई बनाने और रूपरेखा आमतौर पर बिना लिखी हुई होती है।
Madubani Panting Krishna |
Madhubani Painting
जबकि धार्मिक पेंटिंग में विभिन्न देवी-देवता शामिल हैं, धर्मनिरपेक्ष और सजावटी चित्रों में विभिन्न प्रतीक हैं और समृद्धि और प्रजनन क्षमता जैसे हाथी घोड़ा, शेर तोता, कछुआ, बांस, कमल, फूल, पुरनिया पत्ती, पाना फूल, लता, स्वस्तिक, समका (simbal)आदि पृष्ठभूमि पर बनते हैं।
मानव आकृतियाँ अधिकतर अमूर्त और रैखिक रूप में हैं और जानवर आमतौर पर हैं प्राकृतिक और प्रोफ़ाइल में सदा चित्रित हैं। मधुबनी पेंटिंग का बॉर्डर थीम और स्टाइल की तरह ही महत्वपूर्ण है। सेवा सीमा को आकर्षक बनाने के लिए कलाकारों को ज्यामितीय प्रतीकों और अन्य वनस्पतियों और जीवों के मजबूत खिक डिजाइन लागू किए जाते हैं।
पेंटिंग उनके दैनिक जीवन का प्रमुख हिस्सा बन गया है और यह आसानी से समझ में आ जाता है जब कोई भी उनके घर पर जाता है तो उसे मिल जाएगा कोई इस पेंटिंग पर काम कर रहा है जैसे कि शायर, खराब कवर, भित्ति चित्र, पेपर पेंटिंग आदि। कलाकार कोमोलेश कोर्न ने सबसे पहले हस्तनिर्मित कागज पर पानी के सबूत स्याही के साथ अलग-अलग छवि की रेखा खींची, और अपनी कला का प्रदर्शन किया और इस तरह से उन्होंने लगभग 100/150 आस्थगित आकार (छोटे आकार) के पास कई रेखा चित्र बनाए।
बहुत से विदेशी अनुसंधान उद्देश्य के लिए मधुबनी गांव में आते हैं और वे इन पेंटिंग को खरीदते हैं और कारीगरों को वाणिज्यिक ऑर्डर भी देते हैं और फिर वे मौके और बिक्री पर इन काले और सफेद रेखीय चित्रों पर रंग लागू करते हैं। मधुबनी के सभी कलाकारों का उपयोग किया जाता है।
प्राकृतिक और सिंथेटिक रंग और इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे अपनी परंपरा का आनंद ले रहे हैं, लेकिन अब वे ग्राहकों के अनुसार पेंटिंग बनाते हैं कुछ कलाकार फ्री हैंड ड्राइंग के विशेषज्ञ हैं। कोहबर मधुबनी पेंटिंग के महत्वपूर्ण प्रकारों में से एक है। बिहारी लोगों की शादी और कोहबर पेंटिंग एक दूसरे के पर्याय हैं। कोहबर एक विशेष रूप को इंगित करता है।
इस प्रकार की नयी ताजगी और इतिहास को समेटे हुए मधुबनी चित्रकला आज भी अपने आप को बनाये हुए है और इसका संघर्ष आज भी जारी है यह अब केवल अपने क्षेत्र में ही सिमित नहीं है बल्कि देश विदेश में भी अपने परचम को लहरा चुकी है।
भारत से लेकर विदेशो तक में इसको ख़रीदा जाता है यह केवल कपड़ो और घरो की दीवारों की शोभा के लिए ही नहीं रह गयी है बल्कि फैशन डिजाइनरों से लेकर मोबाईल की सजावट तक में प्रयोग होने लगा है।
वास्तव में उभरते हुए बाज़ार और उन्नत तकनीक की वजह से आज इसने अपने आप में एक नया मुकाम बनाया है इसने नई उचाईओ को छुआ है केवल भारत में ही नहीं बल्कि देश विदेशो में भी इसने अपनी छाप छोड़ी है।
आज बच्चे बूढ़े और जवान सभी के दिलो में इसने एक अलग जगह बनायीं है नए आने वाले कलाकार आज नए माद्यम और नयी तकनीको के साथ इसे नए आयाम की ओर ले जा रहे है। बाजार की संभावनाओं में एक योगदान कायम किया है और आज के समय से इसकी प्रसिद्धि का अंदाजा लगाया जाये तो देखा जा सकता है की मधुबनी ने आर्थिक कला क्षेत्र में अपना बहुमूल्य योगदान किया है।
इन् सभी बातों को मद्देनजर रखते हुए ये कहा जा सकता है की मधुबनी चित्र कला का अपना ही अलग आयाम है सैकड़ो सालो से लेकर राजा महराजाओं के महलो से गुजर कर गाओं और देहातो से होते हुए आज यह सभी देशो के कोनो में पहुंच चुँका है और आज भी आगे बढ़ रहा है।
यह भारतीय लोगो का कर्तव्य है की भारत की विरासत को सहेज कर रखें और भारत की संस्कृति को बना कर रखे ताकि आने वाली पीढ़ियो को भारत की संस्कृति और विरासत के बारे में जान कर गर्व हो भारत की महानता एकरूपता में नहीं बल्कि इसकी विविधता में है और इसे सहेज कर रखना हर भारतीय का कर्तव्य है जिसमे कला का एक विशेष महत्त्व है।
अक्सर पूछे जाने वाले कुछ प्रश्न
मधुबनी पेंटिंग में खास क्या है
यह भारत में बनायीं जाने वाली एक प्रसिद्द कला है यह भारत के बिहार राज्य के मिथिला क्षेत्र में बनायीं जाती है इस प्रकार की पेंटिंग में कई प्रकार की ज्यामितीय आकृतियों का प्रयोग किया जाता है इसका एक सांस्कृतिक और लोक महत्व है इसके अंतर्गत भारतीय देवी देवता पशु पक्षी प्रेमी प्रेमिका राधा कृष्णा जैसी आकृतियों का चित्रण किया जाता है।
मधुबनी पेंटिंग में किस प्रकार के रंगो का प्रयोग किया जाता है
प्रारम्भ में बनायीं जाने वाली मधुबनी पेंटिंग में प्राकृतिक रंगो का प्रयोग किया जाता था जैसे सफ़ेद रंगो के लिए चावल के दानो का प्रयोग पिले रंगो के लिए हल्दी का प्रयोग काले रंग के लिए लकड़ी को जलाकर रंग बनाना हरे रंगो के लिए पेड़ पोधो की पत्तियों का प्रयोग आदि प्राकृतिक पदार्थो से विभिन्न रंगो को बनाया जाता था लेकिन यदि आज के परिदृश्य में देखा जाये तो आर्टिफिशियल रंगो का प्रयोग अधिक किया जाता है।
मधुबनी पेंटिंग की थीम क्या होती है
मधुबनी पेंटिग भारत की सांस्कृतिक और रीती रिवाजो को दर्शाती है इसलिए इनमे प्रयोग की जाने वाली थीम भी इसी प्रकार की होती है हिन्दू देवी देवता जैसे कृष्ण राधा, भक्ति रस से सम्बंधित पेंटिंग प्राकृतिक दृश्य जैसे नदी पहाड़ पेड़ पौधे, सूरज चाँद और विभिन्न प्रकार ज्यामितीय डिजाइन आदि।
तान्त्रिक मधुबनी पेंटिंग
यह एक प्रकार की ऐसी पेंटिंग है जिसमे भारतीय देवी काली माँ के रूप और उनकी घटनाओ को दर्शाया जाता है जैसे काली माँ का उग्र स्वरूप या पुराणों में वर्णित कोई घटना अथवा उनके विभिन्न स्वरूपों के शरीरो व भावों का चित्रण किया जाना आदि।
इसके आलावा भारतीय तांत्रिको व तंत्र विद्या से सम्बंधित यंत्रो जैसे श्री यंत्र ,लक्ष्मी यंत्र, काली यन्त्र चित्रण तांत्रिक मधुबनी पेंटिंग में किया जाता है। इस प्रकार की पेंटिंग को अधिक मात्रा में नहीं बनाया जाता है ज्यादातर राधा कृष्ण मछली पशु पक्षी , फूल पत्तियाँ पेड़ पौधे अनेक प्रकार के प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण ही मधुबनी पेंटिंग में किया जाता है।
मधुबनी पेंटिंग के प्रकार
भारतीय मधुबनी पेंटिंग को मुख्यतया पांच भागो में वर्णित किया जाता है जो इस प्रकार है भरनी ,कांचनी ,तांत्रिक , गोदना और खोबर
भरनी शैली
भरनी हिंदी भाषा में प्रयोग किया जाने वाला एक शब्द है जिसका मतलब है, भरना (Filling) इस प्रकार की पेंटिंग में भारतीय देवी देवताओ और उनकी लीलाओ का चित्रन भरनी शैली में किया जाता है।
भरनी शैली माधुबनि पेंटिंग की पांच शैलियों में से एक है यह कला का एक गहरा रूप है जो अपने गहरे और चमकीले रंगो के लिए जाना जाता है इस कला के पारम्परिक रूप में भारत की पारम्परिक कथाओ के साथ साथ हिन्दू देवी देवताओ का भी चित्रण किया जाता है
कांचनी शैली
इस पेंटिंग का सम्बन्ध हिन्दू समुदाय की कायस्थ जाती से है यह एक प्रकार की व्यक्तिगत शैली है इस प्रकार की पेंटिंग में केवल दो रंगो का प्रयोग किया जाता है इसके आलावा मोनोक्रोम का भी प्रयोग किया जाता है कम से कम रंगो का प्रयोग इसकी विषेशता को बढ़ाता है इसके अंतर्गत पशु पक्षी प्राकृतिक दृश्य आदि इसमें बनाये जाने वाले प्रमुख विषय है।
गोदना
मधुबनी पेंटिंग की इस नयी शैली को खोजने का श्रेय चानू देवी को दिया जाता है इन्होने इस शैली में बांस की कलम का और रंग के लिए काजल का प्रयोग किया जिसने इसे एक नई श्रेणी में लेकर खड़ा कर दिया है।
मिथिला जाति में इस प्रकार की पेंटिंग को बनाया जाना एक विशेष महत्त्व रखता है इस पेंटिंग में पेड़ पौधे, जीव जंतु , फूल पत्तिया आदि विषयो से सम्बन्धित कला को दर्शया जाता है।
वैसे तो इस पेंटिंग को कैनवास कागज जैसे आधारों पर बनाया जाता है इस पेंटिंग को यदि ध्यान से देखा जाये तो यह आज कल बनाये जाने वाली कला टैटू (Tattoo) के ज्यादा करीब दिखायी देती है।
तांत्रिक शैली
इस शैली में सांस्कृतिक और धार्मिक पदचिन्हो का प्रयोग उन्नत रूप से किया जाता है इस प्रकार की पेंटिंग को किसी खास दिन के लिए तैयार किया जाता है इसे खासकर घरो में ही तैयार किया जाता है। इस प्रकार की शैली में काली , धार्मिक यंत्र चिन्हो आदि को बनाया जाता है।
इसके बारे में अधिक वर्णन ऊपर किया जा चुका है,रामायण और महाभारत जैसे महाग्रंथों से प्रभावित इस शैली का एक अलग ही स्थान है। धार्मिक चिन्हो के साथ साथ इस शैली में धार्मिक शब्दों ,अक्षरों का भी प्रयोग अधिक मात्रा में किया जाता है।
खोबर शैली
मिथिला शैली में बनायीं जाने वाली इस पेंटिंग का एक अलग ही स्थान है। इस प्रकार की पेंटिंग में हिन्दू रीती रिवाजो के अनुसार की जाने वाले विवाह आदि के द्रश्यो को पेंटिंग के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया जाता है पहले इस प्रकार की पेंटिंग को विवाह वाले घरो की दीवारों फर्श पर बनाया जाता था लेकिन मॉर्डनाइजेसन होने पर इस प्रकार की पेंटिंग को कागज कपडे आदि पर भी बनाया जाने लगा है।
इसके अंतर्गत शिव पार्वती,योग योगिनी, तन्त्र शक्ति, हिन्दू देवी स्वरूपों जैसे विषयो को दर्शाया जाता है लेकिन मुख्य रूप से इस पेंटिंग में हिन्दू रीती में होने वाले विवाहो का ही विशेष स्थान दिया जाता है और विवाह दृश्यों को विभिन्न रंगो के माध्यम से दिखया जाता है।
मधुबनी पेंटिंग को कैसे पहचाने
मधुबनी पेंटिंग को पहचानने का सबसे अच्छा तरीका है इसकी शैली को पहचानना इस कला को इसकी मोटी आउटलाइन के साथ किसी करैक्टर की नाक को तीखा बनाया जाता है और आँख को मछली के समान बनाया जाता है इसके अंतर्गत बनाये जाने वाले विषयो में प्राकृतिक दृश्य जैसे पेड़ पौधे,फूल पत्तियां और पशुओ में मछली कछुआ, हाँथी आदि इसके अलावा चाँद, तारे,सूरज आदि दृश्यों को बनाया जाता है।
अच्छी कला की परिभाषा
ऐसी कला जो किसी जो किसी मकसद को पूरा करने के लिए ,भावनाओ ,हाव भाव ,अभिव्यक्ति को दर्शाने में समर्थ है और कलाकार और देखने वालो के बीच सम्बन्धं स्थापित कर सके एक अच्छी कला की परिभाषा है।
अच्छी कला का सबसे अच्छा उदहारण यह हो सकता है ,जो देखने वालो और अपने बीच एक आकर्षण का सम्बन्ध स्थापित कर सके और यह सम्बन्ध तभी स्थापित हो सकता है जब कला का कोई उद्देश्य हो या किसी प्रकार का संदेश हो
मधुबनी पेंटिंग कैसे बनाये
यदि आप मधुबनी पेंटिंग सीखना चाहते है तो आप को कुछ रूल्स को फॉलो करना पड़ेगा।
1 . आप को आउटलाइन करना आना चाहिए , बार्डर बनाने आना चाहिए इसके लिए आपको स्केच से किसी मधुबनी पैन्टिन्ग को देखकर पेपर पर आउटलाइन करना चाहिए प्रथम प्रयास में केवल आउटलाइन और बार्डर बनाना सीखे इंटरनेट पर कई मधुबनी पेंटिंग के स्केच आपको मिल जायेगे जिसकी आउटलाइन नक़ल करे।
2. सेकंड स्टेप में पेड़ पौधे ,बेल बूटे ,मछली, मोर ,भारतीय देवी देवता कृष्ण राधा बनाने का प्रयास करे ,इस पेंटिंग में अधिक डेफिनेशन देने की जरुरत नही होती है इसलिए ज्यादा डिटेल पर ध्यान न दे केवल आउटलाइन के मोड़ आदि का ध्यान रखें प्रकृति में पायी जानने वाली चीजों को ऑब्ज़र्व करके साधारण स्केच बनाना सीखें।
3.इस स्टेप में स्केच को डेकोरेट करना सीखे जैसे यदि आप कोई मछली का चित्र बना रहे है तो उसके शल्को को डेकोरेटिव बनाने का प्रयास करे जैसे शल्को को बड़ा बनाना उनमे कई बिंदु किसी बेल बूटे का डिजाइन आदि बनाना और किसी पेड़ के पत्ते के स्केच में डिजाइन बनाना मछली के चारों और छूटी जगहों को डिजाइन से भर दे।
और किसी देव या देवता के कपड़ो में आतंरिक डिजाइन बनाना आदि , डिजाइन बनाते समय इस बात का ध्यान रखें की डिजाइन में किसी प्रकार का गैप न छूटे यह इस पेंटिंग की बड़ी खासियतों में से एक है , यदि कोई गैप छूट भी गया है तो उसे भी डिजाइन के द्वारा भर दें ,इस गैप्स को भरने के लिए आप मछली, बेल बुटे ,फूल पत्तिया जैसे डिजाइनों का सहारा ले सकते है।
5. इस स्टेप में आप अपनी बनाये हुए स्केच और डिजाइनों में रंग भरना शुरू करें आप दो व तीन कलर लेकर भरना शुरू करें ,रंगो को चुनते समय इस बात का ध्यान रखें के रंग गहरे हो इन पेंटिंग में हल्के रंगो का प्रयोग नहीं किया जाता है रंग भरते समय भी किसी प्रकार का गैप नहीं छूटना चाहिए इस बात का ध्यान रखें।
मधुबनी पेंटिंग की कीमत
मधुबनी पेंटिंग की कीमत के बारे में सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता है क्योकि यह पेंटिंग के आकार ,उसमे प्रयोग किये जाने वाले रंग की क्वॉलिटी ,आधार तथा कलाकार द्वारा मांगी जाने वाली कीमत पर निर्भर करता है।
यह 300 से लेकर 25 या 30 हजार भी हो सकता है , घरो की दीवारों पर लगाई जाने वाली पेंटिंग की एक सामान्य पेंटिंग की कीमत लगभग 2000 से 3000 तक हो सकती है इनको खरीदने के लिए आप इंटरनेट का प्रयोग कर सकते है जहा पर कई साइटों पर यह पेंटिंग आसानी से उपलब्ध है यहाँ पर आप अपनी पसंद और दीवार के चुनाव के आधार पर पेंटिंग का चुनाव कर सकते है।
मधुबनी एक लोक कला
मधुबनी एक लोक कला है जो बिहार राज्य से सम्बन्धित है पुराने समय से ही इस कला की प्रयोग घरो की दीवारों फर्श ,विवाह, समारोहों और सजावट में बनायीं जाती रही है जी आज भी जारी है बस फर्क सिर्फ इतना है की आज इसमें आधुनिकता शामिल कर ली गयी है जो की जमीन के आधारों से हट कर कैनवास पर आ गयी है, पहले इसका प्रयोग सजावट के लिए ही होता था जो की आज आर्थिक रूप से ये लोगो की मदद कर रही है।
मधुबनी कला कितनी पुरानी है
मधुबनी के बारे में ये कहा जाता है की राजा जनक जो की सीता के पिता थे और श्री राम जिनका विवाह सीता से हुआ था ,इनके विवाह के दौरान 7 वी 8 वी शताब्दी इस पेंटिंग को सजावट के लिए बनाया गया था लेकिन यह अंदाजे के तौर पर ही कहा जा सका है इसमें कितनी सच्चाई है इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
मधुबनी पेंटिंग के लिए किस प्रकार के पेन का प्रयोग किया जाये
पहले हमें ये देखना होगा की पींटिंग बनाने के लिए किस आधार का या कैनवास का प्रयोग किया जा रहा है , उदाहरण के लिए यदि कागज का प्रयोग किया जा रहा है तो स्केच, कलम, मार्कर का यूज़ किया जा सकता है और यदि कपडे जैसे आधार का प्रयोग किया जा रहा है तो इसके लिए फेब्रिक कलर या सेंथेटिक कलर का प्रयोग किया जा सकता है वास्तव में ये इस बात पर निर्भर करता है की आप किस प्रकार के आधार पर इसे बनाना चाहते है।
मधुबनी पैन्टिन्ग के लिए किस प्रकार के पेपर का यूज़ करे
सामान्यतः मधुबनी पेंटिंग के लिए हैंडमेड पेपर (Handmade Paper) का प्रयोग किया जाता है तकनिकी भाषा में इसे व्हाटसमैन (Whatsman ) पेपर कहा जाता है इसकी सामान्य शीट 10 से लेकर 20 रूपए तक हो सकती है।
इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए की पेंटिंग के लिए अच्छे पेपर का प्रयोग करें।
मधुबनी पैंटिंग के लिए कौन सा स्थान प्रसिद्ध है
यह पैंटिंग मुख्य रूप से बिहार के मिथिला क्षेत्र में बनायीं जाती है ,लेकिन इसकी प्रसिद्धि के कारन अब यह भारत के कई भागों में कम या ज्यादा रूप से बनायीं जाती है अब इसका आर्थीकरण हो गया है घरो में सजावट के लिए इसे ख़रीदा बेचा जाने भी लगा है।
निष्कर्ष
प्राचीन काल से आज तक यह कला अपनी पहचान को बनाये रखें हुए है यह इसकी दृढ़ता से जमे रहने की इसकी काबिलियत को दर्शाता है, लोगो के बीच इसकी एक अलग पहचान है, कला की थोड़ी सी भी समझ रखने वाले इसे आसानी से पहचान सकते है ,आने वाले वक्त में भी यह अपनी पहचान कायम रखेगी
दोस्तों ये आर्टिकल आपको कैसा लगा हमें बताये और अधिक जानकारी के लिए इस वेबसाइट को सब्सक्राइब करे और , अन्य कोई जानकारी के लिए हमें लिखे , धन्यवाद।
Madhubani Painting hindi,
Reviewed by Easenex
on
फ़रवरी 24, 2020
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